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भरत चरित
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ढाळ : २६
सिन्धु देवी भरतजी को निवेदन करती है। १. तेला पूरा होने पर सिंधु देवी का आसन चलित हुआ। उसने अवधि ज्ञान का प्रयोग किया।
२. अवधि ज्ञान से भरतजी को देखकर विचार करने लगी- छह खंड का अधिपति भरत चक्रवर्ती पैदा हुआ है।
___३. तीन ही काल में देवी का यह जीत व्यवहार होता है कि उपहार लेकर धन भेंटकर चक्रवर्ती का विनय करे।
४. इसलिए मैं भी यहां से भरत राजा के पास जाकर उपहार उनके चरणों में रखकर उनकी स्तुति करूं।
५. ऐसा विचार कर वह एक हजार आठ कुंभ लेकर आई। कुंभों की सुघड़ रचना नाना प्रकार के मणिरत्नों से की गई है।
६. उन पर कनकरत्नों तथा मणिरत्नों के अनुपम चित्र शोभित हैं।
७,८. दो विशिष्ट स्वर्णमय भद्रासन, हाथों के कड़े, भुजबंध आदि अनेक आभूषण भी साथ लेकर उत्कृष्ट गति से जहां भरतजी बैठे हैं वहां आकर आकाश में खड़ी हुई।
९. दोनों हाथ जोड़कर विनयपूर्वक मस्तक झुकाकर मुख से जय-विजय शब्दों से वर्धापन करते हुए गुणगान करने लगी।