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दोहा
१. बढ़ईरत्न को आज्ञा सौंपकर भरतजी स्नानघर में गए। जैसा कि पीछे कहा गया है उसी प्रकार स्नानघर से उपस्थानशाला में आए।
२. वहां चतुर्घट वाले अश्वरथ पर बैठे। उस रथ का मैं वर्णन कर रहा हूं उसे ध्यानपूर्वक सुनो।
ढाळ : २४
भरत नरेन्द्र का रथ ऐसा है। १. रथ धरती के ऊपर चलता है। उसकी गति तीव्र है। उसके अनेकानेक श्रेष्ठ लक्षण हैं। विविध प्रकार से उसका वर्णन किया जाता है।
२,३. हेमवंत पर्वत के मध्य भाग की गुफाओं के निर्वात स्थान में पले हुए विचित्र प्रकार के वृक्षों के सुलक्षण काठ से वह कुशलतापूर्वक निर्मित है।
४. जांबूनद स्वर्ण में उसके झूमकों को आकर्षक रूप में घड़ा गया है। उसके अरे कनक के समान दीप्तिमान् हैं। उन्हें देखते ही आंखें ठंडी हो जाती है।
५,६. अरों में पुलकरत्न, इंद्ररत्न, नीलशीशकरत्न, प्रवालरत्न, स्फटिकरत्न आदि अनेक लेष्टरत्न तथा चंद्रकांता आदि मणिरत्नों को विशेष रूप से विभूषित किया गया है।