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भरत चरित
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११. भरतजी मोहक प्रचंड शब्दों से ब्रह्मांड को आपूरित करते हुए बल- - वाहनों के समुदायों के झुंड साथ चल रहे हैं ।
१२. हजारों- - हजार देवताओं से परिवृत्त नरनाथ वैश्रवण देवता की तरह राजा भरत ऋद्धिवान् हैं।
१३. शक्रेंद्र की भारी ऋद्धि के समान भरतजी ऋद्धिसंपन्न हैं । यश-कीर्ति चारों ओर फैल रही । भरतजी इस अवसर्पिणी में पहले चक्रवर्ती हैं।
१४. समस्त गांवों-नगरों के राजाओं को अपनी आज्ञा स्वीकार करवाते हुए, उनके उपहार ग्रहण करते हुए चल रहे हैं।
१५. पूर्व पुण्य के प्रसाद से उनके मन में हर्ष हिलोरें ले रहा है । पर अंतरंग में इन्हें निरर्थक समझते है, इन्हें छोड़कर मोक्ष में जाएंगे।