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इसी प्रकार ‘स्रज्, दिश, उष्णिह्, दृश्, त्विष्, प्रादृष' इत्यादि शब्द चलते हैं। इनके थोड़े-से रूप नीचे दे रहे हैं
प्रथमा एकवचन
द्वितीया एकवचन
सप्तमी बहुवचन स्रक्षु दिक्षु
स्रक्
स्रजम्
दिक्
तृतीया द्विवचन स्रग्भ्याम् दिग्भ्याम् उष्णिग्भ्याम् दृग्भ्याम् त्विड्भ्याम् प्रावृड्भ्याम्
दिशम् उष्णिहम् दृशम्
उष्णिक्षु
उष्णिक् दृक् त्विट् प्रावृट्
दृक्षु
त्विषम्
त्विड्सु.
प्रावृषम्
प्रावृट्सु
मात्रे
ऋकारान्त स्त्रीलिंग 'मातृ' शब्द माता मातरौ
मातरः सम्बोधन (हे) मातः मातरम्
मातः मात्रा मातृभ्याम्
मातृभिः
मातृभ्यः मातुः मात्रोः
मातृणाम् मातरि
मातृषु इसी प्रकार 'दुहित, ननान्दृ, यातृ' शब्द चलते हैं।
ऋकारान्त स्त्रीलिंग ‘स्वसृ' शब्द स्वसा स्वसारौ
स्वसारः सम्बोधन (हे) स्वसः 2. स्वसारम्
स्वसः 3. स्वस्रा स्वसृभ्याम्
स्वसृभिः शेष रूप 'मातृ' शब्द के समान होते हैं। प्रथमा, द्वितीया, सम्बोधन के रूपों में 'स्वस' शब्द के सकार में अकार दीर्घ होता है परन्तु 'मातृ' शब्द के तकार में अकार दीर्घ नहीं होता। इन दोनों शब्दों में यही भेद है।