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6. उद्यानं गच्छ फलं च भक्षय-बाग को जा और फल खा। 7. अन्यत् वस्त्रं देहि-दूसरा वस्त्र दे। 8. अन्यत् पुस्तकम् आनय-दूसरी पुस्तक ले आ। 9. अपूपं देहि सूपं च स्वीकुरु-पूड़ा दे और दाल ले। 10. मुद्गौदनं देहि दुग्धं च तत्र नय-खिचड़ी दे और दूध वहाँ ले जा। 11. अत्र त्वम् आगच्छ स्वादु फलं च देहि-यहाँ तू आ और मीठा फल दे। 12. ओदनं भक्षय, यत्र कुत्रापि च गच्छ-चावल खा और जहाँ चाहे जा।
पूर्व दो पाठों में 'देव' तथा 'राम' इन दो शब्दों की सातों विभक्तियों के एकवचन के रूप दिए हैं। एकवचन वह होता है जो एक संख्या का बोधक हो, जैसे-छत्रम् (एक छाता)। 'छाता' शब्द से एक ही छाते का बोध होता है। बहुत हुए तो उनको 'छाते' कहेंगे।
हिन्दी में एक संख्या के दर्शक वचन को 'एकवचन' कहते हैं। एक से अधिक संख्या का बोधक जो वचन होता है उसको ‘अनेक' (बहु) वचन कहते हैं। जैसे-छाता (एकवचन)। छाते (अनेकवचन)।
संस्कृत में तीन वचन हैं। एक संख्या बतानेवाला ‘एकवचन' होता है। दो संख्या बतानेवाला 'द्विवचन' कहलाता है तथा तीन अथवा तीन से अधिक संख्या बतानेवाले को 'बहुवचन' कहते हैं।
द्विवचन तथा बहुवचन के रूप इस पुस्तक के दूसरे भाग में दिए गये हैं। इस प्रथम भाग में केवल एकवचन के ही रूप दिए हैं। यदि पाठक एकवचन के ही रूप ध्यान में रखेंगे तो वे बहुत उपयोगी वाक्य बना सकेंगे। इसलिए पाठकों को चाहिए कि वे इन रूपों की ओर विशेष ध्यान दें। अब कुछ वाक्य देते हैं
1. विष्णुमित्रस्य गृहं कुत्र अस्ति-विष्णुमित्र का घर कहाँ है ? 2. तस्य गृहं तत्र न अस्ति-उसका घर वहाँ नहीं है। 3. हुसैनन द्रव्यं दत्तम्-हुसैन ने धन दिया। 4. यज्ञदत्तः कदा अत्र आगमिष्यति-यज्ञदत्त कब यहाँ आएगा। 5. फलस्य बीज कुत्र अस्ति-फल का बीज कहाँ है ? 6. पश्य सः तत्र न अस्ति-देख वह वहाँ नहीं है। 7. पर्वतस्य शिखरं रमणीयम् अस्ति-पर्वत का शिखर रमणीय है। 8. पाठे शब्दाः सन्ति-पाठ के अन्दर शब्द हैं। 9. शब्दे अक्षराणि सन्ति-शब्द के अन्दर अक्षर हैं। .. 10. पुस्तकं त्यक्त्वा गच्छ-किताब को छोड़कर जा। 11. एकस्य पुस्तकम् अन्यः कथं नेष्यति-एक की पुस्तक दूसरा कैसे ले जाएगा।
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