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इति पृच्छेयम् । ' इदं औषधं सेवे' इति प्रतिभाषेत । अनन्तरं 'कस्ते चिकित्सकः ' ? इति मया पृष्टः 'असौ मम चिकित्सकः ' इति प्रतिवदेत् ।
(4) अथ तत्तदनुरूपं संभाष्य, मित्रम् आपृच्छय, गृहम् आगमिष्यामि ।
(5) एवं चिन्तयन् मित्रं प्राप्य, सादरम् अपृच्छत् " वयस्य, अपि सह्यो ज्वरावेगः ?" इति । "तथैव वर्तते । न विशेषः" इति स प्रत्यवदत् ।
(6) "भगवतः प्रसादेन तथैव वर्तताम् । कीदृशं औषधं सेवसे ?” इति । ज्वरार्तः प्रत्यब्रवीत् " मम औषधं मृत्तिका एव" इति ।
(7) वयस्यः प्राह - " तदेव भद्रतरम् । “कस्ते चिकित्सकः" इति ।
( 8 ) रुग्णः सकोपं अब्रवीत् " मम भिषग् यम एव" इति ।
( 9 ) बधिरः प्रोवाच - " स एव समर्थः तं मा परित्यज' इति ।
(10) एवं प्रतिकूलं प्रतिवचनं श्रुत्वा स रोगी दुःसहेन कोपेन समाविष्टः परिजनम् आदिशत् ।
(11) “भोः कथम् अयम् एवं क्षते क्षारं प्रक्षिपति । निष्कास्यतां अयम्
अर्धचन्द्रदानेन " इति ।
( 12 ) अथ स बधिरो मंदधीः परिजनेन गलहस्तिकया बहिः निःसारितः ।
(कथा-कुसुमाञ्जलेः)
पूछूंगा। 'यह दवा लेता हूं' ऐसा वह उत्तर देगा । पश्चात् 'कौन तुम्हारा वैद्य ( है ) ' ऐसा मेरे पूछने पर 'अमुक मेरा वैद्य है' ऐसा वह उत्तर देगा ।
( 4 ) अनन्तर इस प्रकार अनुकूल बोलकर, मित्र से पूछ-ताछकर घर आ जाऊंगा ।
( 5 ) इस प्रकार विचार करता हुआ मित्र (के पास पहुंचकर, आदर के साथ पूछा - "मित्र क्या सहन करने योग्य बुख़ार का ज़ोर ( है ) " । "वैसा ही है, कोई फ़र्क नहीं”, ऐसा वह जवाब में बोला ।
(6) "परमेश्वर की कृपा से वैसा ही रहे । कौन-सी औषध लेते हो ?” ऐसा पूछने पर रोगी ने “मेरी दवा मिट्टी ही है" ऐसा प्रत्युत्तर दिया ।
( 7 ) मित्र बोला - "वही अधिक हितकारी ( है ) । "
"कौन - सा तेरा वैद्य ( है ) ?" (8) रोगी क्रोध से बोला- “मेरा वैद्य यम ही ( है ) !”
(9) बधिर बोला - " वही शक्तिमान है, उसको न छोड़।”
(10) इस प्रकार विरोधी वचन सुनकर उस रोगी ने असह्य क्रोध से युक्त होकर नौकर को आज्ञा की ।
(11) “अरे क्यों यह इस प्रकार ज़ख़्म पर नमक डालता है । निकाल दे, इसको गला पकड़कर ।
( 12 ) पश्चात् उस मूर्ख बधिर को नौकर ने गला पकड़कर बाहर निकाला । (कथा कुसुमाञ्जलि )
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