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इन वाक्यों में कई बातें ध्यान में रखने योग्य हैं
संस्कृत में कथा के आरंभ में 'अस्ति' आदि क्रिया के शब्द वाक्य के प्रारम्भ में आते हैं, जिनका हिन्दी में वाक्य के अन्त में अर्थ दिया जाता है, जैसेसंस्कृत में - अस्ति गौतमस्य तपोवने कपिलो नाम मुनिः ।
हिन्दी में - गौतम के आश्रम में कपिल नामक मुनि रहते हैं । संस्कृत में यह वाक्य-रचना, ललित (अच्छी) समझी जाती है ।
नियम- किसी शब्द के साथ 'त्व' अथवा 'ता' शब्द जोड़ने से उसका भाववाचक शब्द बनता है, जैसे - वृद्ध = बुड्ढा । वृद्धत्वम् = बुड्ढापन । मूषकः = चूहा, मूषकता चूहापन । पुरुषः = मनुष्य, पुरुषत्वम् = पुरुषपन। पशु = जानवर, हैवान । पशुत्व पशुता, हैवानपन ।
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नियम - विशेषण का कोई अपना लिंग नहीं होता । विशेष्य के लिंग के अनुसार ही विशेषणों के लिंग बनते हैं, जैसे
स्त्रीलिंग
भ्रष्टा स्त्री
दृष्टा नगरी संवर्धिता कीर्तिः
नपुंसकलिंग
भ्रष्टम् पुष्पम्
दृष्टः पुत्रः संवर्धितः वृक्षः
दृष्टं पुस्तकम् संवर्धितं ज्ञानम्
सव्यथा नारी
सव्यथं मित्रम्
सव्यथः व्याघ्रः इसी प्रकार अन्य विशेषणों के सम्बन्ध में भी जानना चाहिए ।
अब ‘हितोपदेश' नामक ग्रंथ से एक कथा यहाँ दी जा रही है। पूर्वोक्त शब्द और वाक्य जिन्होंने याद किए होंगे, वे पाठक इस कथा को अच्छी प्रकार समझ सकेंगे। इसलिए पाठक हिन्दी में दिया हुआ अर्थ बिना देखे केवल संस्कृत पढ़कर
अर्थ करने का प्रयत्न करें । जब सम्पूर्ण कथा का अर्थ हो जाए, तो सम्पूर्ण पाठ को याद करें और इसके पश्चात् हिन्दी के वाक्य देखकर उनकी संस्कृत बनाने का प्रयत्न करें।
(1) मुनिमूषकयोः कथा
पुल्लिंग
भ्रष्टः पुरुषः
(1) अस्ति गौतमस्य महर्षेः तपोवने महातपा नाम मुनिः । तेन आश्रमसन्निधाने मूषकशावकः काकमुखाद् भ्रष्टः दृष्टः ।
(2) ततः स स्वभाव - दयात्मना तेन मुनिना नीवारकणैः संवर्धितः । ततो बिडालः 16 तं मूषकं खादितुं धावति ।
(2) ऋषि और चूहे की कथा
(1) गौतम महर्षि के तपोवन में महातपा नामक एक मुनि रहता है। उसने आश्रम के पास कौवे के मुख से गिरा हुआ चूहे का बच्चा देखा ।
(2) तत्पश्चात् उस (बच्चे) को स्वाभाविक दया भाव से प्रेरित होकर मुनि ने धान के कणों को खिलाकर पाला,