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(9) कठोर अथवा अघोष व्यञ्जन-क, ख, च, छ, ट, ठ,
त, थ, प, फ, श, ष, स। इन तेरह व्यञ्जनों को कठोर व्यञ्जन बोलते हैं, क्योंकि इनका उच्चारण कठोर अर्थात् सख्त होता है। (इनकी श्रुति अस्पष्टतर अनुभव होने से इन्हें 'अघोष' भी कहते हैं।) (10) अल्पप्राण व्यञ्जन- क, ग, ङ, च, ज, ञ
ट, ड, ण, त, द, न
प, ब, म, य, र, ल, व इन उन्नीस व्यञ्जनों को अल्पप्राण कहते हैं, क्योंकि इनका उच्चारण करने के समय मुख में श्वास (हवा) पर ज़ोर नहीं दिया जाता। (11) महाप्राण व्यञ्जन-ख, घ, छ, झ
ठ, ढ, थ, ध,
फ, भ, श, ष, स, ह इन चौदह व्यञ्जनों को महाप्राण कहते हैं, क्योंकि इनके उच्चारण के समय मुख में हवा पर बहुत दबाव दिया जाता है।
(12) अनुनासिक व्यञ्जन-ङ, ञ, ण, न, म
ये पांच व्यञ्जन अनुनासिक कहलाते हैं, क्योंकि इनका उच्चारण नाक के द्वारा होता है। स्थान-व्यवस्थानुसार
कण्ठ-नासिका स्थान-ङ तालु-नासिका स्थान-ञ मूर्धा-नासिका स्थान-ण दन्त-नासिका स्थान-न
ओष्ठ-नासिका स्थान-म ___ इस प्रकार व्यञ्जनों की सामान्य व्यवस्था है। इसके अतिरिक्त जो और सूक्ष्म भेद हैं, वे अगले विभागों में बताए जाएंगे।
वर्णों की उत्पत्ति मुख के अन्दर स्थान-स्थान पर हवा को दबाने से भिन्न-भिन्न वर्गों का उच्चारण होता है। मुख के अन्दर पांच विभाग हैं, (प्रथम भाग में जो चित्र दिया है वह देखिए) जिनको स्थान कहते हैं। इन पांच विभागों में से प्रत्येक विभाग में एक-एक स्वर उत्पन्न होता है। स्वर उसको कहते हैं, जो एक ही आवाज़ में बहुत देर तक बोला जा सके, जैसे