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मूलाक्षर-व्यवस्था
1-स्वर
अ आ, इ ई, उ ऊ, ऋ ऋ, ल लू, ए ऐ, ओ औ, अं अः 1 -कण्ठ - स्वर के स्वर - आ आ आ३ 2 -तालु - स्थान के स्वर - इ ई ई३ 3 -ओष्ठ - स्थान के स्वर - उ ऊ ऊ३ 4 -मूर्धा - स्थान के स्वर - ऋ ऋ ऋ३ 5 -दन्त - स्थान के स्वर – लु ("ल) लृ३ 6 -कण्ठतालु – स्थान के स्वर – ए ऐ 7 -कण्ठौष्ठ - स्थान के स्वर - ओ औ 8 –अनुस्वार (नासिका-स्थान) अं, ई, ऊ, एं इत्यादि 9 -विसर्ग (कण्ठ-स्थान) अः, इः, उः, अः इत्यादि 10 -ह्रस्व स्वर
अ, इ, उ, ऋ, लु 11 -दीर्घ स्वर
आ, ई ऊ, ऋ, (*लु) 12 -प्लुत स्वर
आ3, ई3, ऊ३, ऋ३, M३, ह्रस्व स्वर के उच्चारण की लम्बाई एक मात्रा दीर्घ स्वर के उच्चारण की दो मात्रा, प्लुत स्वर के उच्चारण की तीन मात्रा होती हैं। अर्थात् जितना समय ह्रस्व के लिए लगता है, उससे दुगुना दीर्घ के लिए तथा तीन गुना प्लुत के लिए लगता है। दूर से किसी को पुकारने के समय अन्तिम स्वर प्लुत होता है। जैसा 'हे धनञ्जय३ अत्र आगच्छ' (हे धनञ्जया३ यहां आ)।
इस वाक्य में 'धनञ्जय' के यकार में जो आकार है वह प्लुत है, और उसकी उच्चारण की लम्बाई तीन गुनी है। शहरों में मार्ग पर तथा स्टेशन आदि पर चीजें बेचनेवाले अपनी चीज़ों के विषय में प्लुत स्वर से पुकारते हैं, जैसे :
1. ख...टा...इ...यां...
लृ स्वर के लिए दीर्घत्व नहीं है। परन्तु ध्यान में रखना चाहिए कि विवृत-प्रयत्न तृ वर्ण के लिए दीर्घत्व नहीं है, ईषत् स्पृष्टप्रयत्न लु वर्ण के लिए दीर्घत्व है। प्रयत्नों का विचार आगे के विभागों में होगा।