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समत्व की साधना (२)
तुम ( भगवान ऋषभ ) बसौले से काटने और चंदन से चर्चित करने पर समचित्त रहे। तुमने स्थिर चित्त होकर ध्यान किया। इस प्रकार देहाध्यास को छोड़ तुम केवली बन गए ।
मैं तुम्हारे चरणों में समर्पित हूं। उस स्थिति को मैं किस दिन प्राप्त कर सकूंगा ? मेरा मन उतावला हो रहा है।
वासी चंदन समपर्णे, थिर-चित जिन ध्याया । इम तन-सार तजी करी, प्रभु केवल पाया ।। हूं बलिहारी तांहरी वाह ! वाह !! जिनराया । उवा दिशा किण दिन आवसी, मुझ मन उम्हाया ।। चौबीसी १.५, ६
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१२ मार्च
२००६
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