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द्रष्टा
मन की चंचलता को रोकने का यत्न मत कीजिए। वह जब, जहां और जैसे जाता है, उसे जाने दीजिए, उसे देखते रहिए। उस समय मन को दृश्य या ज्ञेय बना लीजिए। इस प्रकार तटस्थ द्रष्टा के रूप में जागरूक रहकर मन का अध्ययन ही नहीं कर पाएंगे, किन्तु उस पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लेंगे।
४ मार्च २००६
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