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आत्मज्ञान (१)
अपने आत्मस्वरूप को जाने बिना परमात्म-स्वरूप का ज्ञानं नहीं हो सकता। इसलिए साधक को साधना से पूर्व आत्मा का ज्ञान करना चाहिए ।
जो आत्मतत्त्व से अनिभज्ञ है, उसकी आत्मा में अवस्थिति नहीं हो सकती । आत्मतत्त्व को नहीं जानने वाला शरीर और आत्मा के भेद का अनुभव नहीं कर सकता ।
अनन्तगुणराजीवबन्धुरप्यत्र वञ्चितः । अहो भवमहाकक्षे प्रागहं कर्मवैरिभिः ।। स्वविभ्रमसमुद्भूतै रागाद्यतुलबन्धनैः । बद्धो विडम्बितः कालमनन्तं जन्मदुर्गमे ॥ ज्ञानार्णव ३२.१,२
१७ फरवरी
२००६
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