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मन की अवस्थाएं चित्त के चार प्रकार हैं१. विक्षिप्त २. यातायात ३. श्लिष्ट ४. सुलीन
विक्षिप्त चित्त चंचल होता है। वह इधर-उधर भटकता रहता है।
यातायात चित्त कुछ आनंद देने वाला होता है। कभी बाहर चला जाता है कभी भीतर स्थित होता है।
अभ्यास के प्रारंभिक क्षणों में साधक या योगी इन दोनों स्थितियों में रहता है।
ये दोनों प्रकार के चित्त विकल्प के साथ बाह्य पदार्थों का ग्रहण भी करते हैं।
इह विक्षिप्तं यातायातं श्लिष्टं तथा सुलीनं च। चेतश्चतुःप्रकारं तज्ज्ञचमत्कारकारि भवेत्॥ विक्षिप्तं चलमिष्टं यातायातं च किमपि सानन्दम्। प्रथमाभ्यासे द्वयमपि, विकल्पविषयग्रहं तत् स्यात्।।
योगशास्त्र १२.२,३
१८ नवम्बर २००६
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