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इन्द्रिय - विजय का फल (३)
भंते! घ्राण - इन्द्रिय का निग्रह करने से जीव क्या प्राप्त करता है?
घ्राण-इन्द्रिय के निग्रह से जीव मनोज्ञ और अमनोज्ञ गन्धों में होने वाले राग और द्वेष का निग्रह करता है। वह गंध संबंधी राग-द्वेष के निमित्त से होने वाला पूर्व-बंधन नहीं करता और पूर्व - बद्ध तन्निमित्तक कर्म को क्षीण करता है ।
घाणिंदियनिग्गहेणं भंते! जीवे किं जणयइ ?
घाणिंदियनिग्गहेणं मणुण्णामणुण्णेसु गंधेसु रागदोसनिग्गहं जणयइ, तप्पच्चइयं कम्मं न बंधइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ । उत्तरज्झयणाणि २६.६५
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.६ नवम्बर
२००६
३३६
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