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इन्द्रिय - विजय का फल (१)
भंते! श्रोत्रेन्द्रिय का निग्रह करने से जीव क्या प्राप्त करता है ?
श्रोत्रेन्द्रिय के निग्रह से जीव मनोज्ञ और अमनोज्ञ शब्दों में होने वाले राग और द्वेष का निग्रह करता है । वह शब्द सबंधी राग-द्वेष के निमित्त से होने वाला कर्म - बंधन नहीं करता और पूर्व - बद्ध तन्निमित्तक कर्म को क्षीण करता है।
सोइंदियनिग्गहेणं भंते! जीवे किं जणयइ ?
सोइंदियनिग्गहेणं मणुण्णामणुण्णेसु सद्देसु रागदोसनिग्गहं जणयइ, तप्पच्चइयं कम्मं न बंधइ, पुव्वबद्धं च निज्जरेइ । उत्तरज्झयणाणि २६.६३
४ नवम्बर
२००६
२३३४
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