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कककककक ककककककका कारण कारक
इन्द्रिय चेतना : विषय और विकार (१५)
इसी प्रकार जो स्पर्श में द्वेष रखता है, वह उत्तरोत्तर अनेक दुःखों को प्राप्त होता है। प्रद्वेषयुक्त चित्त वाला व्यक्ति कर्म का बंध करता है। वही परिणाम-काल में उसके लिए दुःख का हेतु बनता है।
स्पर्श से विरक्त मनुष्य शोक-मुक्त बन जाता है। जैसे कमलिनी का पत्र जल में लिप्त नहीं होता, वैसे ही वह संसार में रह कर अनेक दुःखों की परम्परा में लिप्त नहीं होता।
एमेव फासम्मि गओ पओसं, उवेइ दुक्खोहपरंपराओ। पदुट्ठचित्तो य चिणाइ कम्म, जं से पुणो होइ दुहं विवागे।। फासे विरत्तो मणुओ विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पई भवमज्झे वि संतो, जलेण वा पोक्खरिणीपलासं।।
उत्तरज्झयणाणि ३२.८५,८६
३१ अक्टूबर
२००६
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