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इन्द्रिय चेतना : विषय और विकार (७)
गन्ध-घ्राण का ग्राह्य-विषय है। जो गन्ध राग का हेतु होता है, उसे मनोज्ञ कहा जाता है। जो द्वेष का हेतु होता है, उसे अमनोज्ञ कहा जाता है। जो मनोज्ञ और अमनोज्ञ गन्धों में समान रहता है, वह वीतराग होता है। ___घ्राण गंध का ग्रहण करता है। गन्ध घ्राण का ग्राह्य है। जो गन्ध राग का हेतु होता है, उसे मनोज्ञ कहा जाता है, जो द्वेष का हेतु होता है, उसे अमनोज्ञ कहा जाता है। घाणस्स गंधं गहणं वयंति, तं रागहेउं तु मणुण्णमाहु। तं दोसहेउं अमणुण्णमाहु, समो य जो तेसु स वीयरागो। गंधस्स घाणं गहणं वयंति, घाणस्स गंधं गहणं वयंति। रागस्स हेउं समणुण्णमाहु, दोसस्स हेउं अमणुण्णमाहु।।
उत्तरज्झयणाणि ३२.४८,४६
२३ अक्टूबर २००६
-PER-IN-E-IN-DELIEF-P4-३२२
APEPALI-PRABAR