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इन्द्रिय-विजय का रहस्य
इन्द्रियां ग्राहक हैं । विषय उनके ग्राह्य हैं। वे अपने-अपने विषय का ग्रहण करती हैं। उन्हें रोकने का प्रयत्न मत करो । इन्द्रियों को अपना-अपना विषय ग्रहण करने के लिए प्रवृत्त मत करो।
इस साधना के द्वारा शीघ्र ही परमात्म-तत्त्व प्रकाशित हो जाता है।
गृह्णन्ति ग्राह्याणि स्वानि स्वानीन्द्रिययाणि नो रुध्यात् । न खलु प्रवर्तयेद् वा, प्रकाशते तत्त्वमचिरेण ॥ योगशास्त्र १२.२६
१६ अक्टूबर
२००६
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