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कायोत्सर्ग-विधि जो कायोत्सर्ग करना चाहे, वह काया से निस्पृह होकर खंभे की भांति सीधा खड़ा हो जाए। दोनों बांहों को घुटनों की ओर फैला दे, प्रशस्त ध्यान में निमग्न हो जाए। शरीर को अकड़ कर और झुकाकर न खड़ा हो। परीषह और उपसर्गों को सहन करे। जीव-जन्तु-रहित एकांत स्थान में खड़ा रहे और मुक्ति के लिए कायोत्सर्ग करे।
___कायः, शरीरं तस्य उत्सर्गस्त्यागः.........। तत्र शरीरनिःस्पृहः, स्थाणुरिवोर्द्धवकायः प्रलंबितभुजः, प्रशस्तध्यान - परिणतोऽनुन्नमितानतकायः, परीषहानुपसर्गाश्च सहमानः तिष्ठन्निर्जन्तुके कर्मापायाभिलाषी विविक्ते देशे।
मूलाराधना २.११६, विजयोदया पृ. २७८
३० सितम्बर २००६