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शुक्लध्यान के चार प्रकार (२) पृथक्त्ववितर्क-सविचारी
जब एक द्रव्य के अनेक पर्यायों का अनेक दृष्टियों-नयों से चिंतन किया जाता है और पूर्व-श्रुत का आलम्बन लिया जाता है तथा जहां शब्द से अर्थ में और अर्थ से शब्द में एवं मन, वचन और काया में से एक-दूसरे में संक्रमण किया जाता, शुक्लध्यान की इस स्थिति को पृथक्त्ववितर्क-सविचारी कहा जाता है।
एकत्ववितर्क-अविचारी
जब एक द्रव्य के किसी एक पर्याय का अभेद दृष्टि से चिंतन किया जाता है और पूर्वश्रुत का आलंबन लिया जाता है तथा जहां शब्द, अर्थ एवं मन, वचन, काया में से एक-दूसरे में संक्रमण नहीं किया जाता, शुक्लध्यान की इस स्थिति को एकत्ववितर्क-अविचारी कहा जाता है।
२४ सितम्बर २००६
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