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धर्म्यध्यान का फल धर्म्यध्यान वैराग्य और अनासक्ति की चेतना को जगाने वाला है। इससे ध्याता को अतीन्द्रिय-सुख मिलता है। जो सुख इन्द्रिय-संवेदनों से नहीं मिलता, वह सुख धर्म्यध्यान के परिपक्व होने पर मिलता है।
वह सुख स्वसंवेद्य होता है, उसका स्वयं अनुभव किया जा सकता है, दूसरे को बताया नहीं जा सकता।
अस्मिन् नितान्त-वैराग्य-व्यतिषंगतरंगिते। जायते देहिनां सौख्यं, स्वसंवेद्यमतीन्द्रियम्।।
योगशास्त्र १०.१७
२० सितम्बर २००६
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