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धर्म्यध्यान : आलम्बन ध्यान से पूर्व ध्येय का ज्ञान करना आवश्यक है। उस ज्ञान की प्रक्रिया में चार आलम्बनों का निर्देश दिया गया है
१. वाचना-पढ़ाना। २. प्रतिप्रच्छना-शंका निवारण के लिए प्रश्न करना। ३. परिवर्तना-पुनरावर्तन करना। ४. अनुप्रेक्षा अर्थ का चिंतन करना।
कोई व्यक्ति विषम स्थल में आरोहण करते समय रस्सी का सहारा लेता है। वैसे ही धर्म्यध्यान में आरोहण करने के लिए वाचना आदि का आलम्बन लिया जाता है।
धम्मस्स णं झाणस्स चत्तारि आलंबणा पण्णत्ता, तं जहावायणा, पडिपुच्छणा, परियट्टणा, अणुप्पेहा।
ठाणं ४.६७ विसमंमि समारोहइ दढदव्वालंबणो जहा पुरिसो। सुत्ताइकयालंबो तह झाणवरं समारुहइ।।
झाणज्झयणं ४३
१८ सितम्बर २००६
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