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स्वसंवेदन (३) आत्मा अमूर्त है, इसलिए वह इन्द्रियों द्वारा ग्राह्य नहीं है-'नो इन्द्रियगेज्झ अमुत्तभावा।' इन्द्रियों का विषय है स्पर्श, रस, गंध, वर्ण और शब्द। आत्मा स्पर्श आदि से रहित है इसलिए वह उसका विषय नहीं बनता। __ आत्मा वितर्क के द्वारा भी ग्राह्य नहीं है। क्योंकि तर्क भी अमूर्त को प्रत्यक्ष नहीं कर पाते। तर्क मन का विषय है। इससे स्पष्ट है कि आत्मा मन के द्वारा ज्ञेय नहीं है। ___ इन्द्रिय और मन, दोनों के द्वारा आत्मा का स्पष्ट दर्शन नहीं होता। अतीन्द्रिय ज्ञान के द्वारा ही उसका स्पष्ट अनुभव होता है इसीलिए आत्मा का स्वरूप स्वसंवेद्य है और वह स्वसंवेदन के द्वारा ही गम्य बनता है।
न हीन्द्रियधिया दृश्यं रूपादिरहितत्वतः । वितर्कास्तन्न पश्यन्ति ते ह्यविस्पष्ट-तर्कणाः ।। उभयस्मिन्निरुद्धे तु स्याद्विस्पष्टमतीन्द्रियम् । स्वसंवेद्यं हि तद्रूपं स्वसंवित्यैव दृश्यताम् ।।
तत्त्वानुशासन १६६,१६७
१६ अगस्त २००६