________________
स्वसंवेदन (1)
जिस अवस्था में योगी ज्ञेय और ज्ञाता, दोनों की एकात्मकता का अनुभव करता है उसका नाम है स्वसंवेदन, आत्मानुभव ।
स्वसंवेदन में ज्ञप्तिक्रिया (स्व और पर का अवबोध) के लिए किसी दूसरे करण (साधकतम) की अपेक्षा नहीं होती । इसका हेतु यह है कि स्वसंवेदन ज्ञप्तिरूप है।
वेद्यत्वं वेदकत्वं च यत्स्वस्य स्वेन योगिनः । तत्स्वसंवेदनं प्राहुरात्मनोऽनुभवं दृशम् ॥ स्व-पर- ज्ञप्तिरूपत्वान्न तस्य करणान्तरम् । ततश्चिन्तां परित्यज्य स्वसंवित्यैव वेद्यताम् ॥ तत्त्वानुशासन १६१, १६२
GE GOD GODG..
50005
१४ अगस्त
२००६
२५२