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तन्मय ध्यान और मंत्र मंत्र साधक योगी तन्मय ध्यान के द्वारा स्वयं को नाना रूपों में उपस्थित कर नाना प्रकार के प्रयोजन की सिद्धि कर सकता है।
वह गरुड के रूप में उपस्थित होकर क्षणभर में विष को दूर कर देता है। वह वैश्वानर होकर शीत ज्वर का, सुधामय होकर दाह ज्वर का अपनयन कर देता है। इस प्रकार वह अनेक शांतिक और पौष्टिक कार्य कर सकता है।
स स्वयं गरुडीभूयक्ष्वेडं क्षपयति क्षणात्। कन्दर्पश्च स्वयं भूत्वा जगन्नयति वश्यताम्।। एवं वैश्वानरीभूय ज्वलज्वाला-शताकुलः । शीतज्वरं हरत्याशु व्याप्य ज्वालाभिरातुरम्।। स्वयं सुधामयो भूत्वा वर्षन्नमृतमातुरे। अथैनमात्मसात्कृत्य दाहज्वरमपास्यति।। क्षीरोदधिमयो भूत्वा प्लावयन्नखिलं जगत्। शान्तिकं पौष्टिकं योगी विदधाति शरीरिणाम्।।
तत्त्वानुशासन २०५-२०८
४ अगस्त २००६