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कलकल
कल कल
कल कल कल कल कल
कल कल
ध्यान की योग्यता : दर्शन भावना शंका, कांक्षा, विचिकित्सा ये सम्यक् दर्शन के दोष हैं। इनसे बचने का पुनः-पुनः चिंतन दर्शन भावना का पहला अंग है।
प्रशम, संवेग, निर्वेद, अनुकंपा और आस्तिक्य- ये सम्यक् दर्शन के लक्षण हैं। इनके विकास करने की साधना करते रहना आवश्यक है।
संकाइदोसरहिओ पसमथेज्जाइगुणणोवेओ। होइ असंमूढमणो दंसणसुद्धीए झाणंमि।।
__ झाणज्झयणं ३२
२० जुलाई २००६