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मन और पवन जहां मन है वहां पवन (श्वास) है। दोनों की क्रिया एक साथ होती है। पवन का निरोध होने पर मन की गति का निरोध हो जाता है। मन की गति का निरोध होने पर पवन का निरोध हो जाता है। ____ पवन की प्रवृत्ति तो मन की प्रवृत्ति, मन की प्रवृत्ति तो पवन की प्रवृत्ति। ध्यान का अभ्यास करने वाले साधक के लिए जरूरी है मन और पवन पर नियंत्रण।
मनो यत्र मरुत् तत्र, मरुद् यत्र मनस्ततः । अतस्तुल्यक्रियावेतौ, संयुक्तौ क्षीरनीरवत्।। एकस्य नाशेऽन्यस्य स्यानाशो, वृत्तौ च वर्तनम्। ध्वस्तयोरिन्द्रियमतिध्वंसान्मोक्षश्च जायते।।
योगशास्त्र ५.२,३
१४ मई २००६