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प्राणायाम ( ५ )
रेचक, पूरक और कुंभक-तीनों का समन्वय है प्राणायाम । इनके फल पृथक्-पृथक् बतलाए गए हैं। रेचक के दो फल निर्दिष्ट हैं
१. उदरव्याधि का क्षय
२. कफव्याधि का क्षय
पूरक के भी दो फल निर्दिष्ट हैं
१. शरीर की पुष्टि
२. सर्व व्याधियों का क्षय कुंभक के द्वारा
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१. हृदयकमल विकसित होता है।
२. आंतरिक ग्रंथियों का भेदन होता है ।
३. बल की वृद्धि होती है।
४. वायु की स्थिरता होती है।
परिक्षयः ।
रेचनादुदरव्याधेः, कफस्य च पुष्टिः पूरकयोगेन, व्याधिघातश्च जायते ॥ विकसत्याशु हृत्पद्मं ग्रंथिरन्तर्विभिद्यते ।
बलस्थैर्यविवृद्धश्च, कुत्भकाद् भवति स्फुटम् ॥
योगशास्त्र ५.१०, ११
१० मई
२००६
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