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________________ अहिंसा : प्राणातिपात विरमण (१) इन्द्रिय, आयु आदि प्राण कहलाते हैं। प्राणातिपात का अर्थ है-प्राणी के प्राणों का अतिपात करना-जीव से प्राणों का विसंयोग करना। केवल जीवों को मारना ही प्राणातिपात नहीं है, उनको किसी प्रकार का कष्ट देना भी प्राणातिपात है। पहले महाव्रत का स्वरूप है-प्राणातिपात विरमण। विरमण का अर्थ है-ज्ञान और श्रद्धापूर्वक प्राणातिपात न करना–सम्यक्ज्ञान और श्रद्धापूर्वक उससे सर्वथा निवृत्त होना। पाणाइवाओ नाम इंदिया आउप्पाणादिणो पाणा य जेसिं अस्थि ते पाणिणो भण्णंति, तेसिं पाणाणमइवाओ, तेहिं पाणेहिं सह विसंजोगकरणन्ति वुत्तं भवइ । दशजिचू पृ १४६ विरमणं नाम सम्यग्ज्ञानश्रद्धानपूर्वकं सर्वथा निवर्तनम्। - दशहावृ पृ १४४ ७ अप्रैल २००६
SR No.032412
Book TitleJain Yogki Varnmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Vishrutvibhashreeji
PublisherJain Vishva Bharati Prakashan
Publication Year2007
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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