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पाठ ७७ : भाव
शब्दसंग्रह
कान्दविक: (हलवाई) । कुण्डली ( जलेबी) । अमृती ( इमरती ) | है ( बर्फी ) । पिण्ड : ( पेडा ) | कौष्माण्डम् ( पेठे की मिठाई ) । दुग्धपूपिका ( गुलाबजामुन ) । रसगोल : ( रसगुल्ला ) । शर्करापाल : ( शक्करपारा ) 1 मधुमण्ठः ( बालूशाही ) । सन्तानिका (मलाई ) । कूचिका ( रबडी ) कलाकन्दः ( कलाकन्द ) । पर्पटी ( पपडी ) । घृतपूर : ( घेवर ) । मधुशीर्ष : (खाजा) । मिष्टपाक: ( मुरब्बा ) । वाताशः ( बताशा ) । मोहनभोगः ( मोहनभोग ) । गजकः ( गजक )
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भाव
भाव का अर्थ है - क्रिया । भाव में प्रत्यय होने का अर्थ है क्रिया में प्रत्यय होना । भावस्यैकत्वाद् - भाव एक होता है, इसलिए क्रिया में एक वचन ही होता है । किसी भी कारक में प्रत्यय न होने से क्रिया किसी भी कारक के पीछे नहीं चलती । कर्ता किसी भी पुरुष, वचन व लिंग का हो उससे क्रिया के रूप में कोई अन्तर नहीं होता है । कर्ता में तृतीया विभक्ति ही रहती है । जैसे—
रहा है।
मया गम्यते
आवाभ्यां गम्यते
अस्माभिः गम्यते तया गम्यते
भाव में प्रत्यय होने से आत्मनेपद, एकवचन और नपुंसक लिंग होता है । जैसे ---
मया गतं, अस्माभिगतं । तेन गतं तैः गतं तया गतं, ताभिः गतम् । कुछ प्रत्यय भाव में स्त्रीलिंग में भी होते हैं, उनको नीचे दिया जा
त्वया गम्यते
युवाभ्यां गम्यते
युष्माभिः गम्यते ताभिः गम्यते
तेन गम्यते ताभ्यां गम्यते
तैः गम्यते
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नियम ६६०- - ( गापापचो भावे ५|४|११ ) गा पा ( पिब ) और पच् धातु से भाव में क्ति प्रत्यय स्त्रीलिंग में होता है । प्रगतिः, संगीतिः । प्रपीतिः संपीतिः । पक्तिः, प्रपक्तिः ।
नियम ६१ - - ( स्थो वा ५।४।१२ ) स्था धातु से भाव में प्रत्यय विकल्प से होता है, पक्ष में ङ प्रत्यय भी । प्रस्थितिः, उपस्थितिः ।