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पाठ ४७ : तद्धित १० (प्रमाण)
शब्दसंग्रह पारितोषिकम् (इनाम)। आयकरः (इन्कमटैक्स)। भाटकम् (किराया) । सरकारकरः (चूंगी) । अर्थदंड: (जुर्माना) । द्रोणमुखम् (बडा कस्बा) । स्थानीयम् (बडा शहर) । पत्तनम् (व्यापारी नगर)। उपपुरम् (शहर के पास की बस्ती)। कान्तारः (दुर्गम पथ)। वीथिका, वीथि, प्रतोली (गली) । पद्या, पद्धतिः (पगडंडी)। गह्वरः (वृक्षों की छाया वाला रास्ता) । राजमार्गः (सडक)।
धातु-णशूच्—अदर्शने (नश्यति) नष्ट होना । जनीच्-प्रादुर्भावे (जायते) उत्पन्न होना । खिदंच्—दैन्ये (खिद्यते) खिन्न होना। युधंच् संप्रहारे (युध्यते) युद्ध करना। बुधं, मनच्-ज्ञाने (बुध्यते, मन्यते) जानना । क्लिशच्-उपतापे (क्लिश्यति) दुःखी होना।
णश् और जन् धातु के रूप याद करो (देखें परिशिष्ट २ संख्या ३६, ६६) खिद् से लेकर क्लिश् तक के रूप दिबादि तक जन् की तरह चलते हैं । शेष रूप परिशिष्ट में देखें (संख्या १००,१०१,१०२ ,३७,३८) ।
प्रमाण प्रमाण का अर्थ है लम्बाई । प्रमाण दो प्रकार का होता है-ऊर्ध्व और तिर्यच् । ऊर्ध्वप्रमाण को उन्मान भी कहते हैं। (प्रमाणान्मात्रट ७।४।३३) प्रमाणवाची शब्द से षष्ठी के अर्थ में मात्रट प्रत्यय होता है । जानुनी प्रमाणं अस्य = जानुमात्रं जलं । जानुमात्री परिखा।
नियम ४२०--(ऊर्ध्वं दघ्नड्वयसटौ ७।४।३५) ऊर्ध्व प्रमाणवाची शब्दों से दघ्नट, द्वयसट और मात्रट ये तीन प्रत्यय होते हैं। ऊरु: प्रमाणं अस्य = ऊरुदध्नं, ऊरुद्वयसं, ऊरुमात्रं जलम् ।
नियम ४२१- (इदं किमोतुरिकिय चास्य ७।४।४१) इदं और किं शब्द मानवृत्ति वाची हो तो षष्ठी अर्थ में अतु प्रत्यय होता है और इदं को इय् और किं को किय् आदेश हो जाता है। इदं मानं अस्य = इयान् पटः । कि मानं अस्य – कियान पट: ।।
नियम ४२२-(यत्तदेतदोडावट च ७।४।४२) यत्, तत्, एतत् ये तीन शब्द मानवाची हो तो पष्ठी के अर्थ में अतु प्रत्यय होता है। प्रत्यय से पहले डावट का आगम होता है। यत् प्रमाणं अस्य -- यावान् पट: । इसी प्रकार