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रिमा
वृपा
तद्धित ८ (भाव)
नियम ४०८-(पृथु मृदु भृश० ८।४।४६) पृथु, मृदु, भृश, कृश, दृढ, परिवृढ इन शब्दों के ऋकार को र् हो जाता है इमन् , जि , इष्ठ, ईयस् प्रत्यय परे होने पर । पृथो र्भावः =प्रथिमा । मृदोर्भावः म्रदिमा । भ्रशिमा, कशिमा, ढिमा, परिवढिमा।
_ नियम ४०६-(प्रियस्थिर० ८।४।३८) इमन् आदि प्रत्यय परे होने पर इन शब्दों को ये आदेश होते हैं।
प्रिय-प्र --प्रेमा बहुल-बंह --- बंहिमा स्थिर-स्थ --स्थेमा तृप्त--त्रप-त्रपिमा स्फिर-स्फ = स्फेमा दीर्घ-द्राघ - द्राघिमा उरु-वर-वरिमा ह्रस्व-ह्रस = हसिमा
वृद्ध-वर्ष = वर्षिमा गुरु-गर- गरिमा वृन्दारक-वृन्द = वृन्दिमा
नियम ४१०-(वर्णदृढादिभ्यष्ट्यण च ७।३।६०) वर्णवाची और दृढ, आदि (दृढ, शीत, उष्ण,तृष्णा, मूक, मूर्ख, पंडित, मधुर, विशारद...... आदि) शब्दों से ट्यण और इमन् प्रत्यय होता है । ट्यण से शब्द के आदि स्वर को वृद्धि, अंत के इकार और अकार का लोप होकर य मिल जाता है। शुक्लस्य भावः --- शौक्ल्यं, शुक्लिमा, शुक्लत्वं, शुक्लता । पीतस्य भावः=पैत्यं, पीतिमा, पीतत्वं, पीतता । दाढ्य, द्रढिमा, दृढत्वं, दृढता।
नियम ४११-(पतिराजान्तगुणाङ्गराजादिभ्यः कर्मणि च ७।३।६१) पति और राज शब्द अंत में हो उनसे तथा गुणाङ्ग और राज आदि शब्दों से ट्यण् प्रत्यय होता है। अधिपतेर्भाव:- आधिपत्यं, अधिपतित्वं, अधिपतिता। अधिराजस्य भावः= आधिराज्यं, अधिराजत्वं, अधिराजता । मौढ्यं, मूढत्वं, मूढता। मौखर्य, वैदुष्यं । राज्यं, राजत्वं, राजता । काव्यं, कवित्वं, कविता।
नियम ४१२-(सखिदूतवणिग्भ्यो य: ७।३।६४) सखि, दूत, वणिज् शब्दों से भाव में य प्रत्यय होता है । सख्यं, दूत्यं, वणिज्यम् ।
नियम ४१३-- (युवादेरण ७।३।६८) युव आदि शब्दों से भाव में अण् प्रत्यय होता है । यौवनं, युवत्वं, युवता । स्थाविरं, स्थविरत्वं, स्थविरता।
__ नियम ४१४- (लघुपूर्वाद् य्वृवर्णात् ७।३।७२) इवर्ण, उवर्ण और ऋवर्ण अंत वाले शब्दों से पहले ह्रस्व अक्षर हो तो भाव में अण् प्रत्यय होता है । मुने र्भाव: मौनं, मुनित्वं मुनिता । इसी प्रकार पाटवं, पैत्रं, पार्थवम् ।
नियम ४१५-- (तस्या क्रियायां वत् ७।३।५२) षष्ठ्यन्त नाम से अर्ह अर्थ में वत् प्रत्यय होता है, योग्यता क्रिया की होनी चाहिए। साधोरह वृत्तमस्य साधुवत् ।