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पाठ ३४ : समास ५ ( अलुक्समास )
शब्दसंग्रह
गोराणी ( गंवार फली) । निकोचनम् ( पिस्ता ) । मकाय: (मक्का) । अश्वमाष:, कङ्कटुकः (कोरडु) । आम्र:, रसाल: (आम) । दाडिम : (अनार) । पनस: ( कटहल ) । जम्बीर: (नींबू) । अश्वत्थ : ( पीपल ) । निम्ब: ( नीम ) । बिल्व : (बेल) । वाताद : (बादाम ) । द्राक्षा (अंगूर) । बदरी ( बेर ) । कदली, कदलीफलम् (केला) । नारिकेलफलम् ( नारियल ) । सेवफलम् (सेव) । नारंगफलम् (नारंगी) । आम्रलम् ( अमरूद ) । जम्बु: ( जामुन ) । जम्बीरकं ( कागजी नींबू) । बीजपूर : ( बिजौरा नींबू) । अमृतफलं ( नाशपाती ) । क्षुमानी ( खुमानी ) । आलुकं (आलूबुखारा ) । तूतं ( शहतूत ) । लीचिका (लीची) । अंजीरं (अंजीर ) ।
धातु-यजन् — देवपूजासंगतिकरणदानेषु (यजति, यजते ) देवपूजा करना, संगति करना, देना। वेंन् - तन्तुसन्ताने ( वयति, वयते) सीना। हवेंन् स्पर्धाशब्दयोः (आह्वयति, आह्वयते) स्पर्धा और शब्द करना ( बुलाना ) । टुवन्- बीजसन्ताने (वपति, वपते) बीज बोना ।
यजंन्, वेंन्ह, वेंन् और वप् धातु के रूप याद करो। (देखें परिशिष्ट २ संख्या ७६ से ७९) ।
अलुक्समास
समास में विभक्तियों का लोप होता है । कुछ शब्द ऐसे हैं जिनमें समास करने पर भी उनकी विभक्तियों का लोप नहीं होता उन्हें अलुक्समास कहते हैं । उसके कुछ नियम ये हैं
नियम २०३ - ( आत्मनः पूरणे ३।२।१४ ) - आत्मन् शब्द तृतीयान्त हो और उसके आगे संख्यावाची शब्द पूरण प्रत्ययान्त हो तो तृतीया विभक्ति का लोप नहीं होता । जैसे - आत्मनाचतुर्थः । आत्मनाषष्ठः ।
नियम २०४ - ( परात्मभ्यां चतुर्थ्याः ३ ।२।१७ )- — पर और आत्मन् शब्द चतुर्थी विभक्ति अंत वाले हों और उससे आगे पद शब्द हो तो विभक्ति का लोप नहीं होता । जैसे – परस्मैपदम्, आत्मनेपदम् ।
नियम २०५ - ( तत्पुरुषे कृति ३।२।२२ ) - अकारान्त और हसान्त शब्दों से आगे सप्तमी विभक्ति हो तो उसका लोप नहीं होता यदि कृदन्त प्रत्यय का रूप आगे हो तो । जैसे = स्तम्बेरमः । कर्णेजपः । प्रवाहमूत्रितं ।