________________
पाठ २८ : शतृ और शान प्रत्यय ( १ )
शब्दसंग्रह ( शतृ और शान प्रत्यय के रूप )
1
पश्यत् (दृश्) देखता हुआ । विक्रीणत्, विक्रीणान: (वि + क्री) बेचता हुआ । क्रीडत् (क्रीड् ) खेलता हुआ । स्मरत् ( स्मृ ) स्मरण करता हुआ । तुष्यत् (तुष्) तुष्ट होता हुआ । तरत् (तु) तैरता हुआ । मत् ( मैं ) शब्द करता हुआ । मुञ्चत् (मुञ्च् ) छोड़ता हुआ । जिघ्रत् (घा) सूंघता हुआ । गच्छत् (गम् ) जाता हुआ । ग्रथ्नत् (ग्रंथ) गूंथा हुआ । युञ्जत् (युज्) जोड़ता हुआ । नश्यत् (नश् ) नष्ट करता हुआ । पिबत् ( प ) हुआ । जयत् (जि) जीतता हुआ । पतत् (पत् ) गिरता हुआ । विदधत्, विदधानः (वि + धा) धारण करता हुआ । बिभ्रत् ( भुंनक् ) धारण करता हुआ । ध्यायत् (ये) चितन करता हुआ । कम्पमान: ( कपि), एजमानः (एज़), वेपमान: (वेप) कांपता हुआ । प्रसरत् ( प्र + सृ) फैलता हुआ । ददत्, ददान: (दा) देता हुआ । हसत् ( हस्) हंसता हुआ । पठत् ( पठ् ) पढता हुआ ।रुदत् (रुद्) रोता हुआ ।
( धातु ) - वसं - निवासे ( वसति) रहना ।
देखें |
अस्मद् शब्द के रूप याद करो (देखें परिशिष्ट १ संख्या ४३ )
वस धातु के रूप याद करो (देखें परिशिष्ट २ संख्या ६७ )
नोट - अन्य धातुओं के शतृ, शान प्रत्ययों के रूप परिशिष्ट ४ में
शतृ-शान
शतृ और शान ये दो कृदन्त प्रत्यय वर्तमानकालिक और भविष्य - कालिक हैं। जहां यह विशेषण बनता है वहां इनका अर्थ होता है करता हुआ, जाता हुआ, बोलता हुआ । विशेष्य के अनुसार वचन और लिंग इसमें होते हैं । शतृ प्रत्यय परस्मैपद धातु से, शान प्रत्यय आत्मनेपद धातु से और उभयपद धातु से शत और शान दोनों प्रत्यय होते हैं । भावकर्म में आत्मनेपद ही होता है, इसलिए वहां शान प्रत्यय ही होगा । शतृ प्रत्यय के रूप बनाने का सीधा तरीका यह है कि तिबादि के बहुवचन (अन्ति) का जो रूप बनता है उसमें इ और न् को हटा दो। यह पुल्लिंग का रूप है । जैसे - तिबादि के बहुवचन भवन्ति का रूप भवत् बनता है । भवन्, भवन्तो भवन्तः भवन्तं भवन्तो के के बाद शेष रूप भवत् की तरह चलेंगे। शतृ प्रत्यय के रूप नपुंसकलिंग में