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कर्ता का क्रिया के साथ अन्वय
ते त्वं च पठथ ।
ग- यदि सभी कर्ता प्रथमपुरुष के होंगे तो क्रिया प्रथमपुरुष के अनुसार चलेगी। जैसे - रामः गोपालश्च गच्छतः । सुभाषः विजयः सुदर्शनश्च गच्छन्ति ।
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घ कर्ता भिन्न-भिन्न वचन के हों तो क्रिया समीप के कर्ता के अनुसार होगी । जैसे - ते वा अयं पारितोषिकं गृह्णातु ।
ङ जब एक क्रिया के अनेक कर्ता हों परन्तु वे एक साथ न समझे जाकर अलग-अलग स्वीकार किये जायें तो क्रिया में एकवचन ही होता है । जैसे --न मां त्रातुं तातः प्रभवति न चाम्बा न च भवती-मुझे न तो पिता बचा सकते हैं, न माता और न आप |
च -- जब दो या अधिक कर्ता के आगे कर्ता के रूप में सर्वनाम आये तो किया उसी अन्तिम सर्वनाम के अनुसार होगी। जैसे - माता पिता चेति स्वभावात् द्वितयं हितमस्ति ।
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-जब भिन्न-भिन्न पुरुष के दो या तीन कर्ता 'वा' से सम्बन्धित हों तो क्रिया अपने समीर के कर्ता के अनुसार होगी । जैसे - सा वा यूयं वा तद् कर्म अकुरुत ---- उसने तुम लोगों ने यह काम किया । ज यदि क के साथ दो या तीन पद 'च' से जुड़े हों तो किया मिली हुई संख्या के अनुसार होगी। जैसे - तयोः जगृह्तुः पादान्, राजा राज्ञी च मागधी- -राजा और भागधी रानी ने उन दोनों का पैर पकड़ा ।
झ - दम्पती, पितरी, अश्विनौ इनके रूप द्विवचन में चलते हैं । इनके साथ किया द्विवचन में आती है । जैसे - दम्पती, पितरी अश्विनौ वा गच्छतः । ञ -- - हस्त, नेत्र, पाद, कर्ण आदि शब्द हिन्दी भाषा में बहुवचन के रूप में होते हैं परन्तु उनका भाव द्विवचन का होता है । संस्कृत में भाषान्तर करने के समय उनका भाषान्तर द्विवचन में ही करना चाहिए। जैसे- स हस्ती पादौ च प्राक्षालयत् - उसने हाथ, पैर धोये । सा लोचने न्यमीलत् — उसने आंखें बन्द कर ली ।
ट - द्वय, युगल, युग, द्वन्द्व -- ये चारों 'दो' अर्थ के बोधक हैं । ये शब्द के अन्त में जुड़ते हैं और नपुंसकलिंग एकवचन होते हैं । इनके साथ क्रिया एकवचन में रहती है । जैसे- छात्रद्वयं, छात्रयुगलं, छात्रयुगं, छात्रद्वन्द्वं वा पुस्तकानि पठति ।
ठ - यदि एक वाक्य में पुल्लिंग और स्त्रीलिंग शब्द हों तो सर्वनाम और क्रिया पुल्लिंग होंगे। यदि पुं०, स्त्री०, नपुंसक तीनों हों तो सर्वनाम और क्रिया नपुंसक होंगे। जैसे- शुक्लः पटः, शुक्ला शाटी - ताविमौ क्रीती । शुक्लः पटः, शुक्ला शाटी, शुक्लं अन्तरीयं तानि एतानि प्रक्षालितानि ।
ड-- यदि एक वाक्य में संज्ञाशब्द और सर्वनाम हो तो सर्वनाम शेष