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________________ ६० जैन-पाण्डुलिपियाँ एवं शिलालेख मनोविज्ञान का विश्लेषण किया गया है। इसे जैनेत्तर-समाज ने भी प्रकाशित एवं प्रचारित कर प्रसन्नता का अनुभव किया है। इसी प्रकार आचार्य उग्रादित्य (१०वीं सदी) ने अपने कल्याणकारक नामक ग्रन्थ में वनस्पति-शास्त्र सम्बन्धी एक खोजपूर्ण नई सूचना दी है। उन्होंने उसके पुष्पायुर्वेद-प्रकरण में २५००० प्रकार के भारतीय पुष्पों की चर्चा की है, जबकि वर्तमान कालीन सर्वेक्षणों में केवल १८००० प्रकार के पुष्प ही मिलते हैं। बाकी की पुष्प-जातियाँ-प्रजातियाँ नष्ट हो चुकी हैं। एतद्विषयक अन्य अनेक पाण्डुलिपियाँ भी विभिन्न शास्त्र-भण्डारों में सुरक्षित होने की सम्भावना है। प्रकाशित कुछ पाण्डुलिपि-सूचियाँ । यद्यपि कुछ शास्त्र-भण्डारों ने उपलब्ध पाण्डुलिपियों का सूचीकरण किया है, फिर भी, सहस्रों पाण्डुलिपियाँ अभी अनेक शास्त्र-भण्डारों, व्यक्तिगत संग्रहों या नवांगी जैन मन्दिरों में यत्र-तत्र बिखरी पड़ी हैं। अभी तक न तो उनका सूचीकरण हुआ है और न वे सुरक्षित स्थिति में ही हैं। कुछ स्वार्थी लोलुपीजन उनका व्यक्तिगत रूप से विक्रय भी करते रहें हैं, कुछ को दीमक-चूहों ने खा डाला है और कुछ मौसमी नमी के कारण स्वतः ही काल-कवलित होती जा रहीं हैं। इस प्रकार हमारे राष्ट्र एवं समाज का गौरव तथा भारतीय एवं सामाजिक इतिहास के निर्माण में सहायक मानी जाने वाली पाण्डुलिपियों का दुर्भाग्य देखकर मन व्यथित हो उठता है। _ अभी तक की पाण्डुलिपियों के सर्वेक्षण, सुरक्षा एवं सूचीकरण में जिन संवेदनशील सरकारों तथा शोघ-संस्थानों ने कार्य किये हैं, उनमें स्वतंत्रता-प्राप्ति के पूर्व मध्यप्रदेश एवं बरार-नागपुर-प्रशासन, जैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय, बम्बई, गायकवाड ओरियण्टल रिसर्च इंस्टीट्यूट, बडौदा, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, बम्बई, जैन शास्त्र भण्डार, जैसलमेर, जैन शास्त्र भण्डार, पाटन, राजस्थान पुरातत्व विद्यामन्दिर, जोधपुर एवं जयपुर, भाण्डारकर ओरियण्टल रिसर्च इंस्टीट्यूट, पूना, अड्यार लाईब्रेरी मद्रास, डेकिन कॉलेज, पूना, आमेर शास्त्र भण्डार, जयपुर, जैन शास्त्र भण्डार, नागौर, जैन सिद्धात भवन, आरा (बिहार), गवर्नमेंट क्वींस कॉलेज (शास्त्र भण्डार), वाराणसी, दरभंगा राज्य लाईब्रेरी, दरभंगा, हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग (प्राच्य शास्त्र भण्डार) इलाहाबाद, लालभाई दलपत भाई प्राच्य विद्या मन्दिर, अहमदाबाद, के.पी.जायसवाल रिसर्च इंस्टीट्यूट, पटना, बिहार राष्ट्रभाषा परिष्द, पटना, रॉयल एशियाटिक सोसाइटी बंगाल, गिलगित मेन्युस्क्रिप्ट्स, काश्मीर, तथा मूडबिद्री (कर्नाटक) और ग्वालियर एवं उज्जैन के शोध-संस्थानों ने कुछ वर्गीकृत महत्वपूर्ण पाण्डुलिपि-सूचियाँ प्रकाशित की हैं। इनके अतिरिक्त भी जैन सिद्धांत भास्कर, आरा (बिहार), अनेकान्त, दिल्ली, जैन-हितैषी, बम्बई, नागरी प्रचारिणी पत्रिका, वाराणसी, हिन्दी-साहित्य सम्मेलन, पत्रिका प्रयाग, तथा अन्य कुछ शोघ-पत्रिकाओं ने भी कभी-कभी अप्रकाशित पाण्डुलिपियों की सूचनाएँ प्रकाशित की थी। फिर भी, उनका बहुत बड़ा भाग अभी भी प्रकाशित होना शेष
SR No.032394
Book TitleJain Pandulipiya evam Shilalekh Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherFulchandra Shastri Foundation
Publication Year2007
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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