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अन्वयार्थ-(जो) जो मनुष्य (जिणिंदाणं) जिनेन्द्र भगवंतों का (पूयणं ण्हवणं जवं करेदि) पूजन, अभिषेक, जाप्य करता है [वह] (ईसरत्तं च भोत्तूण) विविध ऐश्वर्यों को भोगकर (सस्सदि महिं पावदि) शाश्वत पृथ्वी अर्थात् मोक्ष को पाता है।
अर्थ-जो मनुष्य जिनेन्द्र भगवंतों का पूजन, अभिषेक, जाप्य करता है, वह विविध ऐश्वर्यों को भोगकर शाश्वत ईषत्प्रागभार नामक पृथ्वी अर्थात् मोक्ष को पाता है।
देव-त्थुदी :: 93