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अन्वयार्थ-(सव्वं) सभी (जिणिंद देवं) अरहन्त देव (सिद्धं किदत्थं) कृतार्थ सिद्ध (णिस्संग-सूरिं उवज्झाय-साहुं) नि:संग आचार्य, उपाध्याय, साधु (जिणमंदिरं) जिनमन्दिर (धम्मरह) धर्मरथ (सत्थं) शास्त्र (च) और (जिणचेइयाणं) जिनचैत्यों को (णमामि) नमन करता हूँ।
अर्थ-मैं सभी अरहंत भगवंतों, कृतार्थ सिद्धों, परिग्रह रहित आचार्य, उपाध्याय, साधुओं, जिनमन्दिर, जैनधर्म रूपी रथ, जैनशास्त्र तथा समस्त जिन प्रतिमाओं को नमन करता हूँ।
88 :: सुनील प्राकृत समग्र