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अन्वयार्थ-(इणं थुदिं) इस स्तुति को (जो) जो (णिच्चं) नित्य (पढेदि) पढ़ता है (चिंतदि) चिंतन करता है (वा) अथवा [इसमें] (सुलीणो) अच्छी तरह लीन होता है [वह] (हि) निश्चय से (सग्ग-मोक्खं च) स्वर्ग और मोक्ष को (पावेदि) पाता है [इस वचन में] (ण संसयो) संशय नहीं है।
अर्थ-इस चौबीस तीर्थंकर स्तुति को जो नित्य पढ़ता है, सुनता है अथवा इसमें अच्छी तरह लीन होता है, वह निश्चय से स्वर्ग और मोक्ष को पाता है, इस वचन में संशय नहीं है।
70 :: सुनील प्राकृत समग्र