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अर्थ-हे जिनेन्द्र। आप मुझे कृष्णादि लेश्या से रहित सुबुद्धि, श्रेष्ठ सम्यक्त्व से पूर्ण तप आचरण व श्रद्धा प्रदान करें, आपके प्रसाद से जगत में कल्याण हो, मंगल हो तथा जैनधर्म का प्रचार-प्रसार हो। नष्ट किया है कमठ का मान जिन्होंने उन पार्श्वनाथ भगवान को नमस्कार हो।
52 :: सुनील प्राकृत समग्र