________________
चरणकमल (चरणचिह्न) की वंदना करके श्री श्रवणबेलगोला क्षेत्र में इस
भद्रबाहु चरित की रचना की गयी। 3. आचार्य आदिसागर, आचार्य महावीरकीर्ति मुनि प्रवर, और तपस्वी आचार्य
सन्मतिसागर गुरुदेव की अपने हित के लिए वंदना करता हूँ। 4. श्रेष्ठ अंग की तरह वरंग (नगर) है, वहीं श्रेष्ठ अंगों से सम्पन्न रत्न के समान
रत्नवर्मा का जन्म हुआ (वही चारुकीर्ति भट्टारक नाम से प्रख्यात हुआ) ऐसे चारुकीर्ति स्वामी कीर्तिमान होवें।
॥आचार्य सुनीलसागर विरचित भद्रबाहुचरित समाप्त॥
398 :: सुनील प्राकृत समग्र