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जायेगा। अनावृष्टि के प्रभाव से सम्पूर्ण जीव समूह क्षुधा-तृषातुर, दीन-दुःखी होयेंगे। धर्म निर्वहन, संयम परिपालन असंभव हो जायेगा। अधिक क्या कहें, संयम आराधकों के लिए यह देश महाकष्टकर तथा भ्रष्टकर हो जायेगा। ऐसे देश में संघ का निवास योग्य नहीं है। अतः यहाँ से संघ का दक्षिण में विहार होगा।
__ यह समाचार जब श्रावकों के लिए ज्ञात हुआ तब वे दुःखित हुए। तथा विनयपूर्वक निवेदन करते हुए इस प्रकार बोले-भगवन् ! यहीं पर ठहरो, यहीं पर निवास करो। विहार मत करो। हम सभी समर्थ हैं। दुर्भिक्षकाल में भी संघ की हर प्रकार से सेवा करेंगे। हमारे कोठार धन-धान्य से परिपूर्ण हैं । कृपा करो, इस क्षेत्र में ही ठहरो।
आचार्य कहते हैं- अच्छी बात है, तुम सभी समर्थ हो, किन्तु दुर्भिक्ष अत्यधिक दुष्कर होगा। जो यहाँ ठहरेंगे, वे धर्मभ्रष्ट और मार्गभ्रष्ट होंगे। अतः हम दक्षिण दिशा में विहार करेंगे।
भद्रबाहु की समाधि : अनन्तर श्रुतकेवली देव ने संघ के साथ दक्षिण-दिशा की ओर विहार किया। श्रावकों के आग्रहवश स्थूलभद्रादि कई मुनिगण आचार्य की आज्ञा का उल्लंघन करके वहीं उत्तरापथ में ही ठहर गये।
कमेण विहरमाणो, ससंघो आयरिओ भद्दबाहू एगंतं सुरम्मं सवणबेलगोलं (कटवप्पं) णामं सुप्पसिद्धं जेण तित्थखेत्तं परिपत्तो... तत्थ णिमित्तणाणेण णिय आयुं थोवं जाणिऊण तेण सल्लेहणापुव्वगं समाहिमरणं णिण्णीयं।
सयल-संघं आकारेऊण मुणिणाहेण सव्वविसओ फुडी कदो। तेण जिणधम्म-पसारणस्थ, मुणिसंघ-परिपालणत्थं जेट्ठ-सेट्ठमुणिराय-विसाखं आयरियपदे परि-ट्ठविऊण सयलसंघस्स महत्तपुण्णं उवदेसं दाऊण अग्गे वि दक्खिणदिसाए विहारहेदूं आणा पदत्ता।
तदा विसाहायरिएण उत्तं- भो संघस्स पाण! तुमं अम्हे एगल्लं चइऊण कत्थ गच्छामो। अम्हाणं साहसो णत्थि। जत्थ तुमं वसिस्स, तत्थ अम्हे वि वसिस्सामो। तव चरणं छंडिऊण कत्थ वि ण गमिस्सामो।
विसाहायरियस्स वयणं सोच्चा अइवच्छलेण भद्दबाहुसामिणा भणिदंभो वच्छ! सम्मं बुज्झसु, तुमं सव्वसमत्थो असि, संपदि अहं आराहणं आराहेमि, तुमं संघस्स परिपालणं, परिवड्ढणं सिक्खा-दिक्खा-जिणधम्मपसारणंच कुणसु।
गुरु-आणं सोच्चा सव्वे सीसा अधोमुहा जादा। तदा चंदगुत्त (पहाचंद) मुणिणा कहिदं-भो सेट्ठ-विसाहायरिय! गुरु-आणं पमाणं किच्चा तुमं संघेण सह विहारं धम्मप्पसारं च कुरु, अहं अत्थ गुरचरण-समीवे वेजावच्चणिमित्तं चिट्ठामि।
तदा भद्दबाहूसामी चंदगुत्तं पि भणदि-भो भद्द! तुमं वि गच्छ।... संघस्स
भद्दबाहु-चरियं :: 391