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साम्य मूर्ति (विरागिणं) वैरागी (लोगप्पवादहीणं च) और लोकप्रवाद से रहित (सम्मदिसायरं) सन्मतिसागर को (वंदे) वंदन करता हूँ।
अर्थ-सुर्दशन, सम्यग्दर्शन संयुक्त, साम्यमूर्ति, बैरागी और लोकप्रवाद से रहित श्री सन्मतिसागर को वंदन करता हूँ।
जुगमुक्खं मुणिमुक्खं, लोगमुक्खं गुणाकरं।
जेण्हसासण-मुक्खं च, वंदे सम्मदिसायरं ॥88॥ अन्वयार्थ-(जुगमुक्खं) युगमुख्य (मुणिमुक्खं) मुनिमुख्य (लोगमुक्खं) लोकमुख्य (गुणाकरं) गुणाकर (जेण्हसासण मुक्खं च) और जैनशासन में मुख्य (सम्मदिसायरं) सन्मतिसागर को (वंदे) वंदन करता हूँ।
अर्थ-युगमुख्य, मुनिमुख्य, लोकमुख्य, गुणाकर और जैनशासन में मुख्य श्री सन्मतिसागर को वंदन करता हूँ।
कप्परुक्खं व्व दायारं, णाण-णेयप्पगासगं।
आगमवारिहिं सेट्ठं, वंदे सम्मदिसायरं ॥89॥ अन्वयार्थ-(कप्परुक्खं व्व दायारं) कल्पवृक्ष के समान दाता (णाणणेयप्पगासगं) ज्ञान-ज्ञेय का प्रकाशन करनेवाले (आगमवारिहिं सेठं) श्रेष्ठ आगमवारिधि (सम्मदिसायरं) सन्मतिसागर को (वंदे) वंदन करता हूँ।
अर्थ-कल्पवृक्ष के समान दाता, ज्ञान-ज्ञेय का प्रकाशन करनेवाले श्रेष्ठ आगमवारिधि श्री सन्मतिसागर को वंदन करता हूँ।
कुलजोदिं कुलाधारं, कलाजुत्तं कलाधरं।
कल्लाणकंखि-कल्लाणं, वंदे सम्मदिसायरं ॥१०॥ अन्वयार्थ-(कुलज्जोदिं) कुल का उद्योत करनेवाले (कुलाधारं) कुल के आधार (कलाजुत्तं) कलायुक्त (कलाधरं) कलाधर (कल्लाणकंखि-कल्लाण) कल्याणकांक्षी कल्याणरूप (सम्मदिसायरं) सन्मतिसागर को (वंदे) वंदन करता हूँ।
अर्थ-कुल का उद्योत करनेवाले, कुल के आधार, कलायुक्त, कलाधर, कल्याणकांक्षी, कल्याणरूप श्री सन्मतिसागर को वंदन करता हूँ।
समदिठिखमादिटिंठ, दिव्वदिदिठ अलोगिगं।
दूरदिटिंट्ठ महादिट्ठि, वंदे सम्मदिसायरं ॥91॥ अन्वयार्थ-(समदिट्ठि) समदृष्टि (खमादिट्ठि) क्षमादृष्टि (दिव्वदिट्ठि) दिव्यदृष्टि (अलोगिगं) अलौकिक (दूरदिट्ठि) दूरदृष्टि (महादिट्ठि) महादृष्टिवाले (सम्मदिसायरं) सन्मतिसागर को (वंदे) वंदन करता हूँ।
सम्मदि-सदी :: 375