________________
अर्थ-जिन्होंने राग, द्वेष, वचन, मन, देह व विकारों को जीत लिया है, ऐसे श्री सन्मतिसागर को वंदन करता हूँ।
संगसुण्णं महापण्णं, भोगाकंखा विज्जियं।
अप्पावलोगणे लीणं, वंदे सम्मदिसायरं ॥49॥ अन्वयार्थ-(संगसुण्णं) संगसून्य (महापण्णं) महाप्रज्ञ (भोगाकंखा विवज्जियं) भोगाकांक्षा से रहित (अप्पावलोगणे लीणं) आत्मावलोकन में लीन (सम्मदिसायरं) सन्मतिसागर को (वंदे) वंदन करता हूँ।
अर्थ-संगशून्य, महाप्रज्ञ, भोगाकांक्षा से रहित, आत्मावलोकन में लीन श्री सन्मतिसागर को वंदन करता हूँ।
सोममुत्तिं सुहासिंधुं, साहुसेट्ठं मणोहरं।
संतिधामं खमारामं, वंदे सम्मदिसायरं ॥३०॥ अन्वयार्थ-(सोममुत्ति) सोममूर्ति (सुहासिंधुं) सुधासिंधु, (साहुसेठें) साधु श्रेष्ठ (मणोहरं) मनोहर, (संतिधाम) शान्तिधाम, (खमाराम) क्षमा के उद्यान स्वरूप (सम्मदिसायरं) सन्मतिसागर को (वंदे) वंदन करता हूँ।
___ अर्थ-सोममूर्ति, सुधासिंधु, साधुश्रेष्ठ, मनोहर, शान्तिधाम, क्षमा के उद्यान स्वरूप श्री सन्मतिसागर को वंदन करता हूँ।
संसारसायरं सेठें, महापोदव्व तारगं।
करुणागुण-जुत्तं च, वंदे सम्मदिसायरं ॥51॥ अन्वयार्थ-(संसारसायरं) संसार सागर में (सेट्ठो महा-पोदव्व तारगं) श्रेष्ठ महापोत के समान तारने वाले (करुणागुण-जुत्तं च) और करुणागुण युक्त (सम्मदिसायरं) सन्मतिसागर को (वंदे) वंदन करता हूँ।
अर्थ संसार सागर में श्रेष्ठ महापोत के समान तारनेवाले और करुणागुण युक्त श्री सन्मतिसागर को वंदन करता हूँ।
सूरिसेट्ठ महाविण्णं, जेण्हमग्गप्पहावगं।
समणिदं खमापुण्णं, वंदे सम्मदिसायरं ॥52॥ अन्वयार्थ-(सूरिसेठं) सूरिश्रेष्ठ, (महाविण्णं) महाविज्ञ, (जेण्हमग्गप्पहावणं) जैनमार्ग प्रभावक (समणिदं) श्रमणेन्द्र (खमापुण्णं) क्षमापूर्ण (सम्मदिसायरं) सन्मतिसागर को (वंदे) वंदन करता हूँ।
अर्थ-सूरिश्रेष्ठ, महाविज्ञ, जैनमार्ग प्रभावक, श्रमणेन्द्र, क्षमापूर्ण श्री सन्मतिसागर को वंदन करता हूँ।
366 :: सुनील प्राकृत समग्र