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अन्वयार्थ-(जाणत्थं वाहगो जोग्गो) यान के लिए योग्य वाहक (गाणत्थं गायगो परो) गान के लिये श्रेष्ठ गायक (णाणत्थं गाहको पत्तो) ज्ञान के लिए ग्राहक पात्र और (झाणत्थं संतचित्तता) ध्यान के लिए शांत चित्तता चाहिए।
भावार्थ-यान के लिए योग्य वाहक, गान के लिए श्रेष्ठ गायक, ज्ञान के लिए श्रेष्ठ ग्राहक पात्र और ध्यान के लिए शान्तचित्तता चाहिए।
संयम सर्वथा लाभकारी है। संजमसाहणा अत्थि, स-पर-संतिकारणं।
उत्थाणत्थं समाजस्स, मोक्खत्थं अप्पसुद्धीए॥०॥ अन्वयार्थ-(संजमसाहणा अत्थि स-पर-संतिकारणं) संयमसाधना स्व-पर शान्ति का कारण है (समाजस्स उत्थाणत्थं) समाज के उत्थान के लिए (मोक्खत्थं) मोक्ष के लिए तथा (अप्पसुद्धीए) आत्मशुद्धि के लिए है।
भावार्थ-संयमसाधना स्व-पर शान्ति का कारण है, समाज के उत्थान के लिए, मोक्ष के लिए और आत्मशुद्धि के लिए है।
सहिष्णुता से एकता होती है ववत्थादो समाजस्स, रट्ठण्णदी विहाणदो।
अणुसासणदो संती, सहिण्हुत्ताअ एगया॥1॥ अन्वयार्थ-(ववत्थादो समाजस्स) व्यवस्था से समाज की (विहाणदो रट्ठण्णदी) विधान-कानून से राष्ट्रोन्नति (अणुसासणदो संती) अनुशासन से शान्ति तथा (सहिण्हुत्ताअ एगया) सहिष्णुता से एकता होती है।
भावार्थ-व्यवस्था से समाज की व संविधान-कानून से राष्ट्र की उन्नति सदा होती है, अनुशासन से शान्ति तथा सहिष्णुता से एकता होती है।
___ लक्ष्यनिर्धारण के पूर्व लक्खणिद्धारणं पुव, चिंतव्यो सत्तिसाहसो।
तदत्थं जोग्गसाहिच्चं, संकप्पं सिद्धी होहिदि ॥52॥ अन्वयार्थ-(लक्खणिद्धारणं पुव्वं) लक्ष्य निर्धारण से पूर्व (सत्तिसाहसो) शक्ति व साहस का (चिंतव्वो) विचार करना चाहिए (तदत्थं जोग्गसाहिच्चं) उसके योग्य साहित्य (व) (संकप्पं) संकल्प हो तो (सिद्धी) सिद्धी (होहिदि) होगी।
भावार्थ-लक्ष्य निर्धारण से पूर्व शक्ति व साहस का विचार करना चाहिए, फिर उसके योग्य साहित्य (साधन) तथा संकल्प हो तो सिद्धि होती ही है।
वयणसारो :: 349