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अन्वयार्थ-(सम्मत्ती दुक्खदो सुक्खं) सम्यक्त्वी जीव दुःख में से सुख, (मिच्छत्ती सुहदो दुहं) मिथ्यात्वी जीव सुख में से दुःख (सहावेण) स्वभाव से ही (णिक्कासेइं) निकाल लेता है। (वीतरागी समं हवे) वीतरागी समभावी होता है।
भावार्थ-सम्यक्त्वी जीव दुःख में से सुख, मिथ्यात्वी जीव सुख में से दुःख स्वभाव से ही निकाल लेता है। वीतरागी समभावी होता है।
अज्ञानी आनन्द नहीं पाता अण्णाणी रंजिदो रागा, होदि य दोस-दूसिदो।
कसायमोहसंजुत्तो, आणंदं लहदे कहं?॥22॥ अन्वयार्थ-(अण्णाणी रंजिदो रागा) अज्ञानी राग से रंजित (दोस दूसिदो) द्वेष से दूषित (य) और (कसायमोहसंजुत्तो) कषायमोह संयुक्त (होदि) होता है,(आणंदं लहदे कह) वह आनन्द कैसे प्राप्त कर सकता है?
भावार्थ-अज्ञानी व्यक्ति राग से रंजित, द्वेष से दूषित और मोह से संयुक्त होता है, ऐसे में वह आनन्द कैसे प्राप्त कर सकता है?
चिन्ता नहीं चिन्तन करो चिंतणं कुरु णो चिंतं, कजं कुणह णो कहा।
पदंसणं च णो कुज्जा, कुजेह अप्पदंसणं॥23॥ अन्वयार्थ-(चिंतणं कुरु णो चिंत) चिंतन करो चिंता नहीं (कजं कुणह णो कहा) कार्य करो कथा नहीं (पदसणं च णो कुज्जा) प्रदर्शन भी मत करो (कुज्जेह अप्पंदसणं) आत्मदर्शन करो।
भावार्थ-चिंतन करो चिंता नहीं, कार्य करो कथा नहीं, और सदा व्यर्थ का प्रदर्शन मत करो, अपितु आत्मदर्शन करो।
व्रतों का पालन करो असंजमो विणासस्स, विगासस्स अणुव्वदो।
महव्वदो पयासस्स, तम्हा वदाणि पालह॥24॥ अन्वयार्थ-(असंजमो विणासस्स) असंयम विनाश के लिए है (अणुव्वदो विगासस्स) अणुव्रत विकास के लिए है (और) (महव्वदो पयासस्स) महाव्रत प्रकाश के लिए है (तम्हा वदाण पालह) इसलिए व्रतों का पालन करो।
भावार्थ-असंयम विनाश का कारण है, अणुव्रतरूप संयम विकास का कारण है, और महाव्रत आत्मप्रकाश सिद्धि का कारण है।
वयणसारो :: 341