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भावार्थ-बताओ समताभाव से कौन जला है? जिनवचन से कौन आहत हुआ है? और कौन धर्मध्यान से नष्ट हुआ है? अर्थात् कोई नहीं, इसलिए इनसे भलीभाँति जुड़ जाओ।
अंत्य भावना सम्मत्त-णाण-चारित्त-धम्मज्झाणेहि जीविदं।
अंते समाहिमिच्चु च, देऊ सिद्धत्थणंदणो॥3॥ अन्वयार्थ-(सम्मत्त-णाण-चारित्त-धम्मज्झाणेहि जीविदं) सम्यक्त्व ज्ञान चारित्र व धर्मध्यान से युक्त जीवन (च) और (अंते समाहिमिच्छु) अंत में समाधिमरण को (सिद्धत्थणंदणो) सिद्धार्थनंदन(देऊ) देवें।
भावार्थ-सिद्धार्थनंदन भगवान महावीर स्वामी मुझे सम्यकदर्शनज्ञानचारित्र व धर्मध्यान सहित जीवन तथा अंत में समाधिपूर्वक मरण प्रदान करें।
प्रशस्ति णाधपुत्ते चउम्मासे, धम्मप्पेहिं च संजुदे।
णियप्पज्झाणसारो य, पुण्णो जादो सुहप्पदो॥54॥ अन्वयार्थ-(धम्मप्पेहिं च संजुदे) धर्मात्माओं से संयुक्त(णाधपुत्ते चउम्मासे) नातेपूते नगर के चातुर्मास में (सुहप्पदो) यह सुखप्रद (णियप्पज्झाणसारो य) निजात्मध्यानसार नामक ग्रन्थ (पुण्णो जादो) पूर्ण हुआ।
भावार्थ-धर्मात्माओं से संयुक्त नातेपूते नगर के चातुर्मास में यह सुखप्रद निजात्मध्यानसार नामक ग्रंथ पूर्ण हुआ। बौद्ध ग्रंथों में महावीर स्वामी का 'निग्गंठणाथपुत्त' नाम से उल्लेख हुआ है, संभवतः उन्हीं के नाम पर इस गाँव का नाम णाथपुत्ते रखा गया होगा, जो अब अपभ्रंश होकर नातेपूते (महाराष्ट्र) हो गया है।
गुरु-स्मरण आदिसायर-सूरिं च, महावीरकित्तिं गुरुं।
सम्मदिसायरं वंदे, सुणीलो बोधि-दायगं 155॥ अन्वयार्थ-(आदिसायर-सूरिं) श्री आदिसागर सूरि (महावीरकित्तिं गुरुं) श्री महावीरकीर्ति गुरु (सुणीलो बोधि-दायगं) तथा गंभीर बोधिप्रदाता (सम्मदिसायरं वंदे) आचार्य श्री सन्मतिसागर जी को वंदन हो।
भावार्थ- श्री आदिसागर सूरि, श्री महावीरकीर्ति गुरु तथा गंभीर बोधिप्रदाता आचार्य श्री सन्मतिसागर जी को वंदन हो।
।इति णियप्पज्झाण-सारो समत्तो। । इस प्रकार आचार्य सुनीलसागर रचित निजात्मध्यानसार समाप्त हुआ। 320 :: सुनील प्राकृत समग्र/भावालोयणा