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________________ पुत्रादि जीव व अजीव के मिश्र रूप होने से असमानजातीय पर्याय वाले हैं, यह देह व कर्म भी आत्मा से भिन्न पुद्गल की संरचना हैं। अत: उपरोक्त सभी इस जीवात्मा से अत्यन्त पृथक पदार्थ हैं, जबकि यह आत्मा ज्ञान-दर्शन-सुखादि अनंत गुणों का गोदाम है। इसलिए निजात्मद्रव्य में एकत्व करके पर-पदार्थों से होने वाली आकुलता का त्याग करो। वस्तु-तत्त्व का भेदज्ञान होने पर आकुलता स्वयमेव मिट जाती है। परद्रव्य से भिन्न आत्मरुचि सम्यग्दर्शन है परदव्वादो भिण्णं, अप्पसरूवस्स जो रुची अत्थि। सो णिच्छय सम्मत्तं, ववहारो पंचगुरु-भत्ती॥94॥ अन्वयार्थ-(परदव्वादो भिण्णं) परद्रव्य से भिन्न (अप्पसरूवस्स) आत्मस्वरूप की (जो रुची अत्थि) जो रुचि है (सो) वह (णिच्छय सम्मत्तं) निश्चय सम्यक्त्व है (पंचगुरु भत्ती) पंचगुरुभक्ति (ववहारो) व्यवहार सम्यग्दर्शन है। ____ अर्थ-परद्रव्यों से भिन्न आत्मस्वरूप की जो रुचि है, वह निश्चय सम्यग्दर्शन है तथा पंचगुरुभक्ति व्यवहार सम्यग्दर्शन है। __व्याख्या-षद्रव्यों का भली प्रकार बोध करके उनमें से निज आत्मतत्त्व की पहचान कर उस ही में रुचि करना। मैं ज्ञायक स्वभाव वाला आत्मा हूँ, ऐसी श्रद्धा से विचलित न होना निश्चय सम्यग्दर्शन है। पंच परमेष्ठी की भक्ति तथा अनुकंपा आदि गुणों का होना व्यवहार सम्यग्दर्शन है। निजज्ञान स्वरूप को जानना सम्यग्ज्ञान है मुत्ता सयलपदत्थं, णादूण य णाणमेव णियभावं। णाणसरूव-णियप्पं, णाणब्भासेण पावेज्जा ॥95॥ अन्वयार्थ-(सयलपदत्थं मुत्ता) सकल पदार्थों को छोड़कर (य) और (णाणमेव णियभावं) ज्ञान को ही निजभाव (णादूण) जानकर (णाणसरूव-णियप्पं) ज्ञानस्वरूप निजात्मा को (णाणब्भासेण पावेज्जा) ज्ञानाभ्यास से प्राप्त करो। अर्थ-समस्त पदार्थों को छोड़कर और ज्ञान को ही निजस्वभाव जानकर ज्ञानस्वरूप निजात्मा को ज्ञानाभ्यास से प्राप्त करो। व्याख्या-पुद्गलादि तथा अन्य जीव पदार्थों को छोड़कर ज्ञान-दर्शनादि गुणों को ही निज स्वभाव जानकर निजात्मा को ही ज्ञानाभ्यास के बल से प्राप्त करो। यह ही निश्चय से सम्यग्ज्ञान है। व्यवहार से स्वाध्याय, तत्त्वचर्चा आदि को सम्यग्ज्ञान कहा जाता है। 298 :: सुनील प्राकृत समग्र
SR No.032393
Book TitleSunil Prakrit Samagra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain, Damodar Shastri, Mahendrakumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2016
Total Pages412
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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