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• अस्थिर करते हैं • रागादि विकल्पों से जीव बंधता है • आत्मस्थिरता ही मोक्षपथ पर बढ़ना है • उपाधियाँ आत्म-स्थिरता में बाधक • ख्याति लाभ की चाह से मोक्ष नहीं • कषाय के बिना बंध नहीं होता • भावकर्म के रोध से द्रव्यकर्म रुकता है • प्रयत्न पूर्वक प्रवृत्ति करो • आत्मा भावों का कर्त्ता है • रागादि भावों का त्याग करो • वैराग्य रहित कौन है • पुण्य-पाप दोनों संसार के कारण हैं • बन्धुता कब तक रहती है • आयु व देह निरंतर क्षीण हो रही है • निज आत्मा ही परमात्मा है • पर अपना नहीं होता • वस्तुतः सभी जीव निर्दोष हैं • क्रोधादि भाव आत्मा के शत्रु हैं • आस्रव अशुभ व दुःखदायी है • दोषी पर भी क्रोध मत करो • जिसकी होनहार भली है • कर्मोदय में मोही मोहित होते हैं • जड़ जड़ है, चेतन-चेतन • ज्ञानी की पहचान • भेदज्ञान की महिमा • आत्मा का स्वरूप • आत्मा में हास्यादि नहीं हैं • पानी पीने से सरल है। आत्मानुभव • आत्मा निजस्वरूप से तो प्रगट ही है • ज्ञानी आत्मानुभव कर मोक्ष पाते हैं • मोही मोहित होते हैं • समभाव के बिना सब कुछ निरर्थक • कैसा समभावी निर्वाण पाता है • समता ही सब कुछ है • आत्मध्यान सर्वश्रेष्ठ है • किसी भी स्थिति भाव मत बिगाड़ो • जनसंसर्ग से बचो • कोई मेरा कुछ नहीं • यह मोक्षमार्ग है • आत्मा ज्ञानस्वभाव सम्पन्न है • मोहभाव का त्याग ही वैराग्य है • परमात्मा समान मनुष्य • शुद्धोपयोग ही निजधर्म है • हे जीव ! चूको मत • अहिंसा की परिभाषा • कैसी उपेक्षा अहिंसा है • पद आपद सहित हैं • आत्मघाती कौन है • मिथ्यात्व पोषक कौन है • धन-पद को ऊँचा मानने वाला भी मिथ्यात्वी • श्रेष्ठतम पुरुषार्थ • ज्ञानी परमार्थ साधते हैं • प्रथम ही आत्महित करो • आत्महित आज ही करो • परदोष दृष्टा आत्महित कैसे साधेगा • ज्ञाता - दृष्टा भाव कर्मों को धोता ज्ञानी अपनी कथा अपने से करते हैं • ज्ञानी पर में सुख नहीं मानते • ज्ञानी निज में रमते हैं। • यदि समता चाहते हो तो पर में आदर छोड़ो • दर्शन- सुखादि जीव में है • पर से अथवा ज्ञान से बंध नहीं होता • निज-स्वरूप की शरण लो • जो दिखता, सो मैं नहीं • आत्मरूप के बोध से त्याग स्वयं होता है • आत्मरूप के बोध से साम्य प्रगटता है • वस्तु उत्पाद व्यय ध्रौव्यात्मक है • राग-द्वेष से सुख-दुःख स्वयं भोगता है • तत्त्वज्ञान सारभूत है • केवल पाठ करने से लाभ नहीं • विषय- कषायों को जीतो • साम्यभाव
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उत्कृष्ट चारित्र है • परद्रव्य में नहीं ज्ञान में सुख है • जो एक को जानता है, वह सबको जानता है • देह व धन में राग हो तो आत्मचिन्तन करो • निजभावों से जीव का बन्धमोक्ष • योग व कषायों को छोड़ो • भूत भविष्य नहीं, वर्तमान में जियो • इच्छा ही आकुलता है • खेद व हर्ष को छोड़ो • आत्मा ज्ञानस्वभाव वाला है • परद्रव्य से भिन्न आत्मरुचि सम्यग्दर्शन है • निजज्ञान स्वरूप को जानना सम्यग्ज्ञान है • राग-द्वेष का त्याग सम्यक् चारित्र है • रत्नत्रय जयवंत हो • मोक्ष के लिए यह करो • आत्म भावना बिना व्रतादि निरर्थक हैं • आत्मानुभव का फल • वह सीखो जिससे कर्म क्षय हो • यह ग्रन्थ स्व-पर के कल्याण के लिए लिखा है
छब्बीस