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आश्रय से स्वयं विस्तार को प्राप्त हो जाते हैं।
उनका जीवन-मरण समान है सो जीवदि गुणा जस्स, धणं धम्मो स जीवदि।
गुण-धम्म-विहीणस्स, जीविदं मरण-समं ॥151॥ अन्वयार्थ-(जस्स गुणा) जिसमें गुण हैं (सो जीवदि) वह जीवित है (धणं धम्मो) जिसमें धन और धर्म है (स जीवदि) वह जीवित है (गुण-धम्म-विहीणस्स) गुण धर्म विहीन का (जीविदं मरण-समं) जीवन मरण समान है।
भावार्थ-जिस बुद्धिमान मनुष्य में ज्ञान, विवेकता, निर्लोभता, संयम, सम्यग्दर्शन, निरभिमानता, क्षमाशीलता आदि अनेक गुण हैं, वह जीवित है तथा जिसमें सतत् धर्म भावना प्रवाहित है, आत्म-तत्त्व के प्रति गहरा समर्पण है, वह जीवित है। शेष मनुष्य जो किसी भी अच्छे गुण और धर्मभावना से रहित हैं, उनका जीवन और मरण समान है। उनका जीवित रहना भी मरे हुए के समान है। गुणवानधर्मी जीव मरने के बाद भी जीवित के समान स्मरण किए जाते हैं।
इन्हें प्रकट न करें सुसिद्धमोसहं धम्मं, गिहच्छिदं च मेहुणं।
कुभुत्तं कुस्सुदं णेव, मदिमंतो पयासदि॥152॥ अन्वयार्थ-(सुसिद्धमोसह) सुसिद्ध औषधि (धम्म) धर्म (गिहच्छिद) घर का छिद्र (मेहुणं) मैथुन (कुभुत्तं) कुभोजन (च) और (कुस्सुदं) कुश्रुत (मदिमंतो) बुद्धिमान (णेव) नहीं (पयासदि) प्रकाशित करते हैं।
भावार्थ-अच्छी तरह से सिद्ध कार्यकारी औषधि, आचरण में लाये जा रहे व्रत-नियम आदि धर्माचरण, घर का छिद्र अथवा आपातकालीन दरवाजा, मैथुनसेवन, गरीबी के कारण किया जा रहा मोटा-सस्ता भोजन तथा सुने गए खोटेअपमानजनक शब्द बुद्धिमान मनुष्य दूसरों को नहीं बताते हैं, क्योंकि ये सब बातें दूसरों को बताने से कभी-कभी बहुत हानिकारक सिद्ध होती हैं।
ये ठीक से ग्रहण करना चाहिए धम्मं धणं च धण्णं च, गुरु वयण-मोसहं।
सु-गहिदं च कादव्वं, अण्णहा णो दु जीवदि153॥ अन्वयार्थ-(धम्मं धणं च धण्णं च, गुरु वयण-मोसह) धर्म, धन, धान्य, गुरुवचन और औषधि (सु-गहिदं) अच्छी तरह ग्रहण करना चाहिए (अण्णहा णो दु जीवदि) अन्यथा जीवित नहीं बचता।
भावार्थ-धर्म, धन, धान्य, गुरुवचन और औषधि इन्हें विवेकपूर्वक, सोच समझकर अच्छी तरह ग्रहण करना चाहिए अन्यथा जीवन भी संकट में पड़ जाता है।
लोग-णीदी :: 181